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मनीष के आलेख नीदरलैड की वेब पत्रिका में
खेल समीक्षक एवं इंडिया स्पोर्टस के संपादकीय सलाहकार मनीष कुमार जो’ाी की टेनिस पर खेल काॅलम नीदरलैंड की वेब पत्रिका http://www.tennis-ontheline.com/ पर पढ़े जा सकते है।

टेनिस

राईफल से निकला सोना


बीजिंग में जब अभिनव बिंद्रा ने अपनी राईफल से सोने के तमगे पर नि’ााना साधा तो ओलम्पिक गांव में तिरंगा लहलहा उठा और पूरा दे’ा ज’न में डूब गया। वास्तव में भारतीय खेल इतिहास में पहली बार हाॅकी और क्रिकेट के अलावा जीत पर पूरे दे’ा में ज’न बनाया गया। पूरे दे’ा का सीना गर्व से चैड़ा हो गया। 25 वर्षीय बिन्द्रा ने अपनी राईफल से इतिहास लिख दिया। बिन्द्रा की सफलता की खु’ाी ने क्रिकेट के जूनून को पीछे छोड़ते हुए पूरे दे’ा को इस युवा शूटर का दीवाना बना दिया। यह युवा आज नायक बनकर उभरा है।

 अभिनव बिन्द्रा जब बीजिंग गया तो उससे पदक की उम्मीद जरूर थी पर किसी को यह उम्मीद नही की बिन्द्रा की राईफल से निकली गोली भारत के लिए इतिहास बन कर निकलेगी। बिन्द्रा की सफलता का सबसे बड़ा कारण था उसकी पीठ पर उम्मीदो का बोझ नहीं था और शूटिंग जैसे खेल में तनाव रहित होकर उतरना महत्वूपर्ण होता है। उसने स्वयं कहा कि अपनी स्पर्धा से एक दिन पहले तक मैंने अपनी स्पर्धा के बारे में नहीं सोचा था। मैं मौसम का मजा ले रहा था। जिस प्रकार से उसने बीजिंग मंे प्रदर्’ान किया उससे साफ जाहिर है कि अभिनव नि’िचत रूप से इतिहास रचने के ईरादे से उतरा था। उसने खेलो के नाम पर भारत में आलोचना करने वालो का मुंह बंद कर दिया। जो इस बार भारतीय दल को नाउम्मीद का दल बता रहे थे, उनके लिए बिन्द्रा का यह करारा जवाब था। जो लोग ओलम्पिक  में भाग लेने वाले भारतीय दल की हमे’ाा आलोचना करते रहे है, बिन्द्रा की सफलता के बाद उनको अपनी राय बदलनी पड़ेगी । खेल प्रेमी अब सीना तान कर कह सकते है कि एक अरब की आबादी का दे’ा खेलो में फिसड़डी नहीं है ओर इस दे’ा के युवा तिरंगे को ऊंचाईयो पर लहलहा सकते है।

 अभिनव बिन्द्रा 10 मीटर राईफल स्पर्धा से पूरे दे’ा का नायक बन गया है । उसका नाम पहली बार चर्चा में नहीं आया है। वह ओलम्पिक से पहले ही वि’व मानचित्र पर शूटिंग में भारत अग्रणी दे’ा के रूप में स्थापित कर चुका था। 2006 में वह वि’व शूटिंग चैम्पियन’िाप में स्वर्ण पदक जीतने वाला पहला भारतीय बना। 2001 में उसने वि’व जूनियर शूटिंग चैम्पिन’िाप में उसने 600 में से 597 अंक बनाकर वि’वरिकार्ड बना कर सबको चैका दिया। 28 सितम्बर 1983 को जन्मे बिन्द्रा का बचपन से ही शूटिंग में लगाव था। उसने मात्र 15 वर्ष में राष्ट्रकुल खेलो में खेलने की योग्यता प्राप्त कर ली और  राष्ट्रकुल खेलो में सबसे कम उम्र का प्रतिभागी बनने का रिकार्ड बनाया। 2001 में उसे राजीव गांधी खेल रतन एवार्ड से नवाजा गया।

 अभिनव बिन्द्रा स्वभाव से शात है। परन्तु उसे बचपन से ही वायदा पूरा नहीं होने पर गुस्सा आता है। वह स्वय किया हुआ वायदा निभाता है। उसने बीजिंग में दे’ा से किया हुआ वायदा निभाया और पूरे दे’ा को गौरान्वित कर दिया। अब जिम्मेदारी दे’ा के उन लोगो की है जो हमे’ाा ओलम्पिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की आलोचना करते है। बिन्द्रा का स्वर्ण पदक दे’ा के लिए गौरव होने के साथ एक सबक है, कि प्रतिभागी खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आलोचना करके उनका मनोबल कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। हार-जीत खेल का हिस्सा है लेकिन खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाया जाना चाहिए।


खिलाड़ियों की सुरक्षा चिंताऐं

आस्ट्रेलिया  के क्रिकेटरो ने पाकिस्तान में सितम्बर में आयोजित होने वाली चैम्पियंस ट्राफी में खेलने से इनकार कर दिया। उन्होन यह कदम हाल ही में पाकिस्तान में आतंकवादीयों द्वारा किये गये बम विस्फोटो के मध्यनजर सुरक्षा कारणो से ‘यह कदम उठाया है। न्यूजीलैण्ड और दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर भी सुरक्षा कारणो से ऐसा ही कदम उठाने की सोच रहे है। इस कारण से चेम्पियसं ट्राफी का आयोजन खतरे में पड़ गया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी दे’ा के खिलाड़ियों ने आतंकवादीयो की हिंसक गतिविधियों के मध्यनजर किसी भी प्रतियोगिता में खेलने से इनकार किया है । इससे पहले भी क्रिकेट व अन्य खेलो के खिलाड़ियों ने सुरक्षा कारणो से हिंसा प्रभावित दे’ाो अथवा शहरो में खेलने से इनकार किया है। इस कारण यह प्र’न खड़ा होना लाजिमी है कि कड़े सुरक्षा उपायो के बावजूद खिलाड़ी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित क्यों होते है ? और मेजबान व खेल संगठन खिलाड़ियों में सुरक्षा का भरोसा पैदा करने में नाकाम्याब क्यों रहे है ?

 ख्ेालो को शांति और मैत्री का माध्यम माना जाता हे। खिलाड़ी खेलो के द्वारा पूरी दुनिया का शांति और मेत्री का संदे’ा देते है। ओलम्पिक आंदालेन इसका एक उदाहरण है जहां तमाम मतभेदो के बावजूद दुनियाभर के दे’ा खेल के लिए एक ही स्थान पर इकट्ठे होते है। भारत और पाकिस्तान में आतंकी घटनाओ के कारण क्रिकेट संबध टूट गये लेकिन क्रिकेट ही दोनो दे’ाो को नजदीक लाने का माध्यम बना। ऐसे में आतंकी गतिवधियां खेलो के इस संदे’ा को प्रचारित होने में बाधा उत्पन्न करती है।  आतंकी सीधे तौर पर खेलो को नि’ााना बनाकर आंतकी घटनाऐं नहीं कर रहे है । फिर भी ख्ेालेा के माध्यम से विभिन्न दे’ाो के माध्यम से खत्म  हो रही वैमनस्यता को आंतकी पचा नहीं पा रहे है और वे हिंसक घटनओ से कहीं न कहीं खेलो को प्रभावित करने की मं’ाा रखते है। ऐसे में सीधे तोैर पर सवाल उठता है कि मेजबान दे’ा और आयोजक संगठन खेलो के आयोजन के सबंध में अन्य तैयारियो के अलावा सुरक्षा उपायो पर कितने गंभीर होते है ? खेल सं्रगठन आयोजक दे’ा अथवा शहर की घोषणा करते है । मेजबान इसकी तैयारियां शुरू कर देते है । लेकिन जब खिलाड़ी सुरक्षा कारणो से खेलने से इनकार करते है तो खेल संगठन सुरक्षा के मुद्दंे को गंभीरता से लेते है जबकि आयोजन की घोषणा करते समय ही सुरक्षा मुद्दो को गंभीरता से लेना चाहिए। इसके लिए सुरक्षा मानदण्ड तय किये जाने चाहिए। आयोजक दे’ा द्वारा सुरक्षा उपाय करने के बावजूद भी  खिलाड़ी अपने आपको असुरक्षित महसूस करते है और हिंसा प्रभावित इलाको में खेलने से इनकार कर देते है। 

 खेलो के माध्यम से शांति का संदे’ा दिया जाता है लेकिन जान को जोखिम में डालकर खेल नहीं खेला जा सकता है। इसके लिए स्वच्छ वातावरण की आव’यकता होती है। खिलाड़ियों के बिना खेल नहीं होता है। खेल में खिलाड़ी अहम् होता है। इसलिए उनकी सुरक्षा की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। उनके सुरक्षा का भरोसा कायम किया जाना चाहिए। हिंसा प्रभावित इलाको में खिलाड़ियों द्वारा खेलने से इनकार करने का तात्पर्य यह है कि कहीं न कहीं खेल संगठनो और आयोजको द्वारा खिलाड़ियों की सुरक्षा को गंभीरता से नही लिया जा रहा है। क्रिकेट हो या अन्य कोई खेल खिलाड़ियों की सुरक्षा को सर्वोपरी माना जाना चाहिए। खिलाड़ियों में सुरक्षा को लेकर भरोसा कायम करने की आव’यकता है। किसी प्रतियोगिता में खेलने के लिए खिलाड़ी को लंबे समय तक एक शहर अथवा दे’ा में रूकना पड़ता है। इसलिए सुरक्षा की गारंटी के बिना खेल खेला जाना संभव नहीं होता है। खिलाड़ियों के सुरक्षा के मुद्दंे पर बहस की आव’यकता है। यदि खेलो के माध्यम से आंतकीयों के हौसलो को पस्त करना है तो खिलाड़ियों की सुरक्षा चिंताओ को दूर किया जाना जरूरी है।





 संदर्भ:ः-  वि’वकप 1983  जीत की रजत जयंती
सपनो की जीत
मनीष कुमार जोशी

क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले ईग्लैण्ड के मैदान लाॅर्डस में जब कपिल देव ने 25 जून 1983 को क्रिकेट की  वि’वकप की ट्राफी अपने हाथ में ली तो यह लम्हा भारतीय क्रिकेट इतिहास की एक सुनहरी दास्तां बन गया। इस लम्हे ने भारतीय क्रिकेट की काया पलट दी। यह जीत केवल भारतीय क्रिकेट की नहीं थी । यह जीत उस समय के भारत के सपनो की जीत थी। उस समय के बदहाल मध्यमवर्गीय युवाओ के लिए जब गर्व करने के लिए कुछ नहीं था तो यह जीत उनके सपनो को साकार करने की प्रेरणा लेकर आई और कपिल देव उस दौर की युवा पीढ़ी का प्रतिनिधि बन गया। हरियाणा के मध्यवर्गीय परिवार से निकले कपिल देव ने न केवल भारतीय क्रिकेट को अर्’ा से फर्’ा पर ला दिया बल्कि उस दौर के युवाओ के सपनो को भी नई उड़ान दी।

 भारतीय क्रिकेट एकदिवसीय क्रिकेट में भारत की महान विजय की रजत जंयती मना रहा है। उस गौरव’ााली लम्हे के गर्व को आज भी महसूस किया जा रहा है। यह जीत का लम्हा सिर्फ क्रिकेट की जीत का लम्हा नहीं था बल्कि यह जीत उस कपिल देव की थी जो उस युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता था जिनके सपने असमय ही दम तोड़ रहे थे। हरियाणा का यह जट उस दौर में क्रिकेट में आया जब क्रिकेट से पैसा बहुत दूर था। उसका सपना था दे’ा का नाम रो’ान करना। परिवार और समाज के प्रतिकूल वातावरण से उसने क्रिकेट तक का सफर तय किया और क्रिकेट में स्पिन उगाहने वाली धरती पर दुनिया के श्रेष्ठ तेज गेंदबाज के रूप  में स्वयं को स्थापित किया। इसके बावजूद जब वि’वकप खेलने वाली क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया तो किसी को यह गंवारा नहीं हुआ। सुनील गावस्कर और मोहिन्दर अमरनाथा जैसे बड़ी खिलाड़ियों की टीम जब इस युवा को सौंपी गई तो उसके लिए कोई आसान काम नहीं था। कपिल की टीम जब ईग्लैंड में अपने वि’वकप अभियान पर थी तो ठीक उसी समय उस दौर का युवा अवसरो के अभाव में अपने आपको कुण्ठित महसूस कर रहा था। प्रतिभाओ का दे’ा से पलायन हो रहा था। मध्यमवर्गीय युवा के लिए पलायन भी दिवा स्वपन था । उस दौर का मध्यवर्गीय युवा घोर निरा’ाा में था। मध्यमवगीर्य युवा के सामने वैसी बाधाऐं थी जैसी कपिल देव को अपने क्रिकेट कैरियर में थी। मध्यमवर्गीय युवा धनाढ्य वर्ग के युवा के सामने अपने आपको कुण्ठित महसूस कर रहा था। उसी तरह कपिल को भी अपने कैरियर में सुनील गावस्कर, गुंडप्पा वि’वनाथ, बि’ानसिंह बेदी और दिलीप वेंगसरकर जैसे खिलाड़ियों के बीच अपने आपको स्थापित करना था। कपिलदेव दृढ़ता से अपने लक्ष्य की ओर जुटा रहा और लाॅर्डस में तमाम बाधाओ के बाद भी भारत के लिए गौरव’ााली जीत दर्ज की।

 कपिल की टीम में सुनील गावस्कर और श्रींकात जैसे खिलाड़ी बिलकुल असफल रहे थे। उसकी टीम ने मोहिन्दर अमरनाथ और मदनलाल के सहारे वि’वकप की वैतरणी पार कर ली। उसके ईरादे बुलंद थे। तभी तो लीग मैच में जिम्बाब्वे के सामने जब टीम के 17 रन पर 5 विकेट गिर चुके थे तो कपिल अकेले ने ही 175 रन की पारी खेली डाली। उसकी इस पारी के सामने आज भी क्रिकेट की बड़ी पारियां बौनी नजर आती है। फाईनल में दो बार की विजता वेस्टइंडीज सामने थी। अपने छोटे सपनो को बड़ा करने चले कपिल देव के लिए यह बाधा भी कोई छोटी नहीं थी। दुनिया की सबसे मजबूत टीम के सामने भारतीय टीम मात्र 183 रन पर आउट हो गइ्र्र । लेकिन कपिल ने अपने साथियो के कान में ऐसा मंत्र फुेका की विव रिचर्डस और क्लाईव लाॅयड की टीम मात्र 139 रन पर ढेर हो गई। उसके साथ ही पूरे भारत में खु’ाी की लहर दोड़ गई। पूरा दे’ा गौरान्वित हो उठा। वह लम्हा भारतीय क्रिकेट इतिहास की दास्तां बन गई। उस दौर का युवा आज प्रौढ़ हो चुका है परन्तु इस जीत की याद आज उसके शरीर में गर्व का संचार करती है।

 इस जीत भारत के सुनहरे क्रिकेट भविष्य की नींव रखी। इस जीत के सामने भारत को मिली कई ऐतिहासिक जीते फीकी नजर आती है। कारण साफ है । यह उस दौर के युवा के सपनो की जीत थी। इस जीत ने दे’ा के लाखो मध्यमवगीर्य युवाओ को नई प्रेरणा दी। इस टीम की विजेता को कोई बड़ी रकम नहीं मिली परन्तु इस टीम का हर सदस्य आज भी दे’ा के करोड़ो लोगो के दिलो पर राज करता है। हरियाणा के जाट ने साबित कर दिया कि मजबूत ईरादे किसी दीवार को भेद सकते हे। इसलिए आज भी कहा जाता है कपिल दा जवाब नहीं।





कसौटी पर क्रिकेट
मनीष कुमार जोषी

छोटी क्रिकेट का बड़ा मजा आईपीएल के रूप  में क्रिकेट प्रेमियों ने च्यूंगम की तरह लिया। थिरकती चीयर्स गर्ल, फिल्म सितारो का हजूम  और रंगीन नजारो के बीच क्रिकेट वास्तव में छोटा नजर आ रहा था। इस छोटे क्रिकेट ने ही बड़ा कमाल किया और कई छुपे हुए सितारे क्रिकेट आसमान पर टिमटिमाने लगे। अब बांग्लादे’ा में शुरू हो रही है त्रिकोणीय एकदवसीय प्रतियोगिता में छोटी क्रिकेट के इन्ही सितारो की परीक्षा हो रही है। इस सीरीज में जहां क्रिकेट के इन नये सितारो की परीक्षा होगी वहीं क्रिकेट को स्वयं परीक्षा से गुजरना होगा। टी- 20 क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता के दौर में एकदिवसीय क्रिकेट की लोकप्रियता भी दांव पर होगी।

 आईपीएल से उभरे कई सितारे इस त्रिकोणीय श्रंखला में एकदिवसीय क्रिकेट में स्थापित करने की को’िा’ा करेंगे। भारत का युसुफ पठान और प्रज्ञान ओेझा पहली बार अंतर्राष्ट्रीय एकदवसीय क्रिकेट में उतरंेगे। इसमें टी-20 क्रिकेट में घूमधड़ाका करने वाले यूसुफ पठान को अवसर मिलने की पूरी उम्मीद है परन्तु 50-50 क्रिकेट में युसुफ को अपने आपको साबित करना सबसे बड़ी चुन्नौत्ती होगी।  एकदिवसीय क्रिकेट  का फार्मेट बिलकुल अलग होता है और इसमें टी-20 के खिलाड़ी को इसमें अभ्यस्त होना आसान नहीं होता है। महेन्द्रसिंह धोनी के नेतृत्व में जब भारतीय टीम ने टी-20 का वि’वकप जीता और उसके तुरंत बाद एकदिवसीय सीरीज में भारतीय खिलाड़ियों को हार का सामना करना पड़ा। लम्बे समय तक भारतीय खिलाड़ी अपने आपको एकदिवसीय क्रिकेट को ढाल नहीं पाये थै। ऐसा ही कुछ आईपीएल में में खेले खिलाड़ियों के साथ हो सकता है। युसुफ पठान के अलावा प्रज्ञान ओझा, सोहन तनवरी, कमरान अकमल, और सुरे’ा रैना ने झमाझम क्रिेकेट में शानदार प्रदर्’ान किय&#

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